
अब आगे 👉
रात के 11 बज चुके , और ठाकुर निवास में शान्ति छा चुकी थी। सभी ने रात का खाना खाया और सभी सदस्य अपने कमरे में सोने चले गए, सिवाय अनु के , वह जागी हुई, हवेली की शान्ति में धैर्यपूर्वक बैठी अपने पति के आने का इंतजार कर रही थी।
अपनी हताशा वयक्त करते हुए अनु खुद से बुदबुदाई "उन्हें अच्छी तरह से मालूम हैं कि मैं उनके खाने से पहले नहीं खाती , फिर भी हमेशा समय पर नहीं आते, चिड़चिड़ा, जलनखोर, घमंडी, दुष्ट, जानवर ठाकुर साहब …"
शिकायतों का उसका एकालाप अचानक दरवाजे की खटखटाने की आवाज से बाधित हो गया , अभी जो फूला हुआ गाल था, अचानक पचकते हुए, होंठो पर मुस्कान आ गई, वह उत्सुकता से दरवाज़े की ओर चुहिया की तरह कदम उठाते हुए भागी , जैसे ही दरवाजा खोली , उसे अपने सुंदर पति का नजारा दिखाई दिया। जिसे देख कर वह मंत्र मुग्ध हो गई।
शिव का कोट उसके बाएं हाथ पर लापरवाही से लपेटा हुआ , उसके बांहे मुड़े हुए , जिससे उसके मजबूत बाहों की नसे दिखाई दे रहा उसके आँखें थकान की वजह से नसीली लग रहे, तो बालों की छोटे लटे भी माथे को चूम रहे,
जैसे ही अनु उत्सुकता से उसके पास पहुंची, अनु उसको निहारने में लगी , जिस पर शिव ने अपना गला साफ किया, जिससे वह अपनी काल्पनिक दुनिया से बाहर आ गई। उसके नजरो से मिलते ही, अनु क्षण भर के लिए डर गई , जिससे उसने अपनी आंखें नीचे कर ली। बिना देर किए अनु उसके हाथ से उसका कोट और दफ्तर बैग लेकर अंदर सोफे पर रख, उसने अपना कदम को रसोई की ओर मोड़ ली।
शिव ने उसकी यह अजीबोगरीब प्रतिक्रिया देखा, उसके माथे पर शिकन आ गई। उसके व्यवहार से हैरान उसने उसके पिछे डाइनिंग एरिया में जाने का फैसला किया।
"हे भगवान, ये मेरी पत्नी कितना डरती हैं, जैसे मैं इसे कच्चा चबा जाऊंगा, और शर्म तो इतना हैं की सारी दुनियां की लड़कियों का शर्माने का जिमा इसी ने लिया हो … " शिव मन की आखिर बात को थोड़ा जोर से बोला दिया " छोटी चुहिया … "
जिससे अनु का ध्यान आकर्षित हो गया, वह अपनी जगह पर खड़ी कुछ देर तक अपने ठाकुर साहब को देखी, लेकिन फिर से नजरों नीचे ली, और दो थाली में खाना परोसने लगी , जैसा शिव ने उसे कहा था साथ में खाने के लिए, वह भी बिना देरी के खुद के लिए निकालने ली थी। शिव उसको कितने बार कह चुका था, खा कर सो जाने के लिया, पर अनु इस बात को न मानते हुए शिव का हमेशा इंतज़ार करती और दोनों साथ में ही खाते थे , इसे दोनों को दिल में खुशी का एहसास हुआ करता था दोनों अपने अपने हिसाब से साथ पाकर एक दूसरे से जुड़ने लगते।
"आपको कुछ चाहिए ठाकुर साहब …?" , अनु कुर्सी पर बैठते हुए पूछी
" नहीं… " , शिव उसे एक नजर देख एक शब्द कह कर शान्ति से खाने लगा। उन्होंने चुपचाप अपना खाना साझा किया। कुछ देर में खाना खाने के बाद, अनु जूठे बर्तन इकट्ठी की और बर्तन साफ करने के लिए रसोई में चली गई।
वही शिव अपने कमरे में जाने के ऊपर सीढ़ियों की तरफ बड़ गया।
जैसे ही वह सीढ़ियों पर अपना पहला कदम रखता की राहुल ने अप्रयाशित रूप से उसका जाना रोक दिया। राहुल की आवाज लिविंग रूम में गूंजा, जिससे शिव का ध्यान खींचा। शिव, राहुल की और मुड़ा , रात के कपड़े में खड़ा उसे ही देख रहा था।
"मैं तुमसे कुछ महत्पूर्ण बात करना चहता हूँ " , राहुल बोला ।
"हाँ बोलो , मैं सुन रहा हूँ …" शिव सपाट चेहरे से बोला।
" यहां नहीं, क्या तुम मेरे कमरे में आ सकते हो? " राहुल ने पूछा ।
शिव ने सिर हिलाया और राहुल के कमरे की ओर दोनों साथ बड़ गए।
"बैठो …" , राहुल उसको एक लकड़ी के कुर्सी पर बैठने को कहता हैं, जिसके बाद शिव बैठता है, राहुल भी उसी के सामने बैठता है।
"जब से आया हूँ , देख रहा हूँ , तुम बहुत ही काम में बिजी हो। कितने समय बीत गए हम दोनों एक साथ बैठ कर पहले की तरह बात ही नहीं हो पाया हैं " राहुल थोड़ा गंभीर लहजे में बोला , दोनों काम करने वाले इंसान थे तो समय बहुत कम ही मिलता था एक दूसरे से बातें करने का।
शिव बस अपना सिर हिला कर राहुल को देखने लगा उसको चुप देख राहुल ही अपने चिर परिचित अंदाज में शिव को छेड़ा।
" वैसे धर्मपत्नी जी का बना स्वादिष्ट खाना खा कर , तो तुम्हें किसी और का बाना खाने का मन नहीं करता होगा इसलिए इतने रात तक होटल में मीटिंग होने के बाद भी घर आकर ही खा रहे हो… लगता हैं किसी को आदत हो गई हैं… " राहुल अपनी आंखे मटकाते हुए शिव को छेड़ने की कोशिश की। पर उसपर तो जरा सी भी फर्क नहीं पड़ा।
" तो क्या तुम्हें जलन हो रही हैं ? मेरी पत्नी इतना अच्छा खाना बनाती हैं " शिव ने उसे शैतानी मुस्कान देते हुए पूछा , वह आगे बोला , " और मै कौन सा हर रोज बाहर खता हूँ, पहले भी घर ही खाता था, और अब जब मेरी पत्नी इतना स्वादिष्ट बनाती है तो मुझे पागल कुत्ते ने काटा है जो बाहर का खा कर आऊंगा "
" हम्मम … बोल तो सही रहे हो, लेकिन मुझे तुम से थोड़ा सा जलन हो रहा हैं तुम जैसे शैतान ठाकुर को इतनी प्यारी कांच कि गुड़िया जैसे लड़की मिल गई , मुझे क्यों नहीं मिली ? " राहुल शिव को परेशान करने के इरादे से दुखियारी बनकर कहा।
ये सुनकर शिव उसको गुस्से में घूरने लगा , उसकी पत्नी पर नजर भी उठा कर कुछ सोचा तो…
ये देख राहुल जल्दी से कहा, " मैं तो बस मजाक कर रहा था, मुझे भी उसी की तरह चाहिए, ये बोल रहा था, वैसे मै तुम्हारे लिए खुश हूँ चलो कोई तो हैं तुम्हारी जिंदगी में अब जिससे तुम अपना जीवन खुशी से बीता सकते हो मुझे तो लगा था की तुम कभी भी शादी ही नहीं करेंगे , कितना लड़की दिखा कर थक गए थे हम सब, लेकिन तुम तैयार कैसे हो गए तुम? ऐसे क्या दिख गया जो बाकि लड़की में नहीं दिखा तुम्हे "
"तुम्हे तो पता ही सब कितने जोर किए थे, मेरे शादी करने के लिए तो बस छोटे चाचा जी ने फोटो लाकर दिखाए , चाचा जी ने कहा कि उनके पहचान में एक साधारण घर की लड़की देखी हैं, जैसा मै और दादी चाहते है, दादी को फोटो दिखाए , सोना और आदि भी वो फोटो देखे , उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आ गई थी। जब सभी को पसंद तो मैं भी उसे देखने के लिए चला गया था , सब कुछ ठीक लगा,जैसा मुझे इस घर और दोनों बच्चों के लिए लड़की चहिए थी, वो मिल गई तो ,फिर हो गई शादी शिव सपाट चेहरे से ही अपने दोस्त को बताया, वह उसके शादी लगने से पहले ही विदेश चला गया था जिस वजह से यहां पर क्या हुआ नहीं पता था लेकिन शिव उसे आने के लिए बोला था लेकिन काम को देखते हुए राहुल अपने जिगरी दोस्त के शादी में ही शामिल नहीं हो पाया था।
"तो क्या तुम ये शादी केवल सोना और आदि के लिए हाँ कहे थे… कुछ और नहीं था ?" राहुल ने पैनी नज़र से घूरते हुए पूछा , वह शिव के अंदर बदलाव देख सकता था। लेकिन उसका दोस्त कुछ और ही बोल रहा था।
"उस समय केवल बच्चो के लिए" शिव इतना कह कर चुप हो गया , शायद अब बहुत कुछ बदल भी गया है जिसको समझने में समय तो लगते ।
" तो अब तुम अनु बच्चा को अपनी पत्नी की तरह ही मानते हो न? वह बहुत ही मासूम , दयालु और प्यारी इंसान हैं वह एक हीरा हैं जो इस घर में अपने प्यार से उजाला बिखेरती है, मै एक नजर में ही देख कर उसके कोमल मन को जान गया, सब उसके साथ कितने खुश रहते हैं और वो बच्ची सच्चे मन से तुम सबकी सेवा करने में कोई भी कमी नहीं छोड़ती , मै तो कहता हूँ तुम्हे किसी और चीज़ की नहीं सोच कर, उसे अपनी पत्नी के रूप में सच्चे मन से स्वीकारों , उसके साथ आगे बढ़ो, किसी के लिए भी शादी की हो लेकिन वो अब तुम्हारी पत्नी हैं तो दिल मत दुखाना उसका " राहुल अपने होशियार दोस्त को समझाया।
"हम्मु … मुझे पता है… और जब एक बार कोई चीज़ शिव ठाकुर के हो जाते हैं तो वो कभी भी किसी और की नहीं होता हैं अब अनु मेरी पत्नी है तो इस जीवन में क्या मैं उसे अगले जन्म में भी चाहूंगा तुम्हे चिंता करने की जरूरत नहीं है "
शिव कम शब्दों में राहुल को समझा दिया की अनु उसकी क्या बन गई हैं। जिसे सुनकर राहुल के होंठो पर मुस्कान आ गई। उसका दोस्त इतना समझदार है कि किसी को समझने या पाठ पढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं है वह खुद सब संभल लेता है। तो अपनी शादी की गाड़ी कैसे चलानी है उसे बताने की जरूरत तो बिल्कुल भी नहीं है।
"तुम्हे क्या यही जरूरी बात करनी थी ?,अगर कुछ नहीं हैं तो मैं जा रहा हूं।" शिव उठ कर जाने लगा, उसे लगा कुछ सच में महत्वपूर्ण बात करना होगा लेकिन ये तो उसकी जिंदगी के बारे में पूछ रहा है, पाठ पढ़ा है।
तभी राहुल उसको रोकते हुए कहा, " क्या तुम अपनी पत्नी के बिना एक पल भी नहीं रह सकते? दोस्त हूँ , तुम्हारा थोड़ा सा मुझे भी समय दो, क्या यार पत्नी के आते ही दोस्त को पहचान नहीं रहे हो , ऐसे लग रहा है, किसी में भावनाएं विकसित हो रहा हैं।"राहुल ने चिढ़ाते हुए कहा, और शैतानी आँखों से देखा।
उसके इस टिप्पणी के कारण शिव ने उसके पेट पर जोर दार मुक्का मारा। जिस पर राहुल दर्द का दिखावा करते हुए हँस दिया।
राहुल कुछ और बोलता की शिव उसको चेतावनी आंखो से देखने लगा जिसपर राहुल ने जल्दी से गंभीर हो कर कहा। "मैं तुम्हें यह कहना चहता हूँ , की मुझे एक घर लेना हैं।हॉस्पिटल के आस पास ही ही , ताकि जाने में दिक्कत ना हो, मैं अब और ज्यादा दिन तक यहां नहीं रह सकता "
"क्यों यहां रहने में क्या परेशानी है? और दादी ,सोना नहीं मानेगी तो " शिव थोड़ा हैरानी में पूछा।
"अरे कोई परेशानी नहीं है भाई, यहां से हॉस्पिटल दूर हैं तो जाने में दिक्कत होती हैं। और मै सब को माना लूंगा, तुम ज्यादा मत सोचो, फिर मेरा खुद का घर हो सपना भी तो था, आज सही मायने में होने जा रहा है तो वहीं रहना चाहता हूँ, फिर कभी आना हुआ तो तुम्हारी पत्नी के बने खाने मुझे यहाँ खींचकर ला ही देगी, हर छुट्टी के दिन आऊंगा, इतना अच्छा बनाती है, की माँ के खाने को याद दिलाती हैं " राहुल बोला।
"ठीक है …, जैसा तुम्हें ठीक लगे" शिव ज्यादा कुछ ना कहा। उसका दोस्त अब खुद के पैरो पर खड़ा हो चुका है तो वह खुद सब देख सकता था।
"ठीक हैं, मैं जा रहा हूँ, शुभ रात्रि।" शिव उठते हुए कहा ।
"तुम्हें भी शुभ रात्रि " राहुल उसको चिढ़ाते हुए जवाब दिया ,वह बोला तो शुभ रात्रि ही लेकिन मतलब कुछ और ही छिपा हुआ था।
" ज्यादा दिमाग के घोड़े मत दौड़ाओ , नहीं तो दूंगा एक घुसा " शिव घूरते हुए जवाब धमकाया । राहुल हँसते हुए ही अपने कमरे का दरवाजा बंद किए उसके हँसी को देख कर शिव सिर हिला दिया। कामिना दोस्त था उसका।
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वह अपने कमरे की ओर चल पड़ा। जहां उसे उसकी पत्नी सोने के लिए बिस्तर तैयार करने का मनोरम दृश्य दिखा रही, दरवाज़े के सहारे झुककर वह चुप चाप उसे देखता रहा। अपने छोटे हाथों से काम करने में लगी थी , उसके आने का उसे बिल्कुल भी भान नहीं हुआ था।
उसके मौजूदगी से अनजान, अनु बिस्तर पर बैठ गई अपने हाथ में एक कहानी की किताब लेकर अपने पति का इंतजार करने लगी। आज रात, उसने उससे बात करने का संकल्प करी थी जिस वजह से जागने का उपाय ढूंढने में लगी थी।
लेकिन कुछ पल में ही, जैसे ही उसकी नजर उससे मिली वह अचानक खड़ी हो गई। शिव उसे एक टक देखता रहा , उसके आंखों की तपिश बढ़ते जा रहे थे। जिसे अनु के पैर कमज़ोर पड़ने लगे।
"आ…आप …क… कब " , अनु हकलाने लगी । उसके नजर उसे बेवकूफ लड़की बनने पर मजबूर कर देती थी।
शिव अपने विचारो से बाहर आया और अपनी श्रीमति को मुस्कुराते हुए देखने लगा। अनु शिव को आज पहली बार आंखो तक पहुंचने वाली मुस्कान देखी, नहीं तो हमेशा उसके चेहरे पर बिना भाव के रहते थे। एक असामान्य दृश्य जिसने उसे अचंभित कर दिया।
"क्या मैं अपने कमरे में नहीं आ सकता श्रीमति जी ?" शिव अपने गहरी आवाज में ही पूछा ।
ये सुनकर अनु घबराकर अपने पल्लू से छेड़छाड़ करने लगी । क्या बोले कंठ ही नहीं खुले, एक तो इतनी शांत और कमरे में अकेले थी कि उसके मौजदी से उसकी सीटी पीटी गुल हो गई
अनु हकलाते हुए बोलीं " नहीं …मेरा… मतलब हैं "
शिव उसी को देखते हुए उसके करीब आया , जिससे उसकी दिल की धड़कन तेज हो गई।
अनु का दिमाग कही और ही भागने लगा जब शांत भाव को देखी " मैने इन्हें नाराज कर दी? क्या ये मुझे डांटेंगे?
उसके बैचेन विचार तब रुके जब शिव ने धीरे से उसके कंधे पर अपने हाथ रखा, जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो गई, वह सभी चीज़ को नजरअंदाज करते हुए, उसे बिस्तर पर बैठ ने के लिए निर्देशित किया। अनु अपनी नजरे नीचे किए हुऐ बैठ गई। क्या हो रहा है उसे बिल्कुल भी नहीं पता ।
शिव ने धीरे से अपनी उंगोलियो से उसकी ठुड्ढी को ऊपर उठाया, ताकि वह उसकी आँखो में नज़रे मिला सके , उसकी आँखों में डर था और डांट सुनने की आशंका थी।
उसने उसके कांपते हाथों को अपने हथेलियों में लिया और उसकी कांपती नसों को अपने अंगूठे से धीरे धीरे सहलाते हुए शांत करने का प्रयास किया। बहुत ही जल्दी डरती थी, इस बात को उसका दिल अब कबूल कर चुका था।
"क्या तुम मुझ से नाराज हो? "शिव पूछा और अपनी हरकत को बिल्कुल भी बंद नहीं किया।
अनु अचंभित हो गईं, उसकी आँखे आश्चर्य से बड़ी हो गई। ये देख शिव हल्के से हँस दिया वह उसे चिढ़ाते हुए पूछा "ये मासूम और सुंदर आँखें बाहर आ जायेगी , तो तुम बिना आँख के बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगोगी "
अनु झेंपते हुए कई बार अपनी पलके झपका दी , उसके ठाकुर साहब उससे क्या पुँछे उसको समझते हुए पूँछी "मैं आप से क्यों नाराज होने लगी? आप ने तो मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं किया हैं "
शिव जवाब दिया " जब से तुम अपनी गलती की माफी मांगी हो, तब से मैं देख रहा हूँ , उदास रहने ली हो, तुम सब का काम बिना कहे कर देती हो सब क्या ध्यान रखती हो लेकिन तुम्हारे चेहरे की चमक गायब क्यों रहता हैं। क्या घर में तुम्हें कोई परेशान करते हैं? मैं काम में व्यस्त हूँ, इसका मतलब ये नहीं हैं की तुम क्या करती और क्या सोचती हो मुझे नहीं पता मैं बस तुम्हें बोलने का इंतेज़ार करता हूँ , लेकिन तुम फिर भी शांत रहती हो, मैंने कहा था की जब तुम मेरे से नाराज़ हो तो मुझे बताओ , कारण खुल कर व्यक्त करो… "
अनु की आँखो में आँसू भर आए , उसने अपनी भावनाओं को छिपाने के लिए अपनी आँखें नीचे कर ली। उसके ठाकुर साहब उसके दुःखी मन को आसानी से पढ़ लिए थे और वो बेवकूफ अपने में ही लगी रहती है।
शिव उसके हाथों पर दबाव डाला और शान्ति से बोला। आज वो अनु को डाट कर अपना और अनु को दिमाग खराब नहीं करना चहता था। जनता था उसे डांट की जगह प्यार ही दिखाना पड़ेगा तभी वह खुल पाएगी।
"मैं कुछ पूछ रहा हूँ अनु , क्या हुआ हैं तुम्हे, उदास क्यूँ रहती हो ? "
अनु आँसू भरी आँखों से अपने ठाकुर साहब को नजर उठा कर देखी, शिव को ऐसा लगा जैसे उसके आँसू देख कर उसका दिल टुकड़ों में टूट गया हो। शिव को अनु के आँसू से हमेशा से तकलीफ देता आया था भले ही वह कभी उसे नहीं बताया, लेकिन उसके हर चीज़ से उसके दिल पर फर्क पड़ते थे।
"न…नहीं … मैं आप से नाराज़ नहीं थी , और रही सब का ध्यान रखना तो मुझे अच्छा लगता हैं मेरा परिवार है, मै ध्यान नहीं रखूंगी तो कौन रखेगा, मुझे किसी के काम करने में कोई दिक्कत नहीं हैं , और घर में मेरे साथ सभी अच्छे से बात करते हैं , वो सब भी मेरा ख्याल रखते है, केवल मैं नहीं, और मैं अपनी गलती के लिए आप से माफी मांगी , लेकिन उसके बाद आप कुछ दिनों से सुबह जल्दी बिना खाए दफ्तर चले जाते और, शाम को जानते हुए भी की मैं आपका इंतज़ार करती हूँ, फिर भी आप जल्दी नहीं आते मुझे लगा मैं आपको खुश नहीं रख पा रही हूँ , मेरे व्यवहार से आप नाराज़ हो, मेरे से आप बात भी नहीं कर रहे थे, आप मेरे से खुश नहीं हो तो मैं भी खुश नहीं रह पा रही थी नहीं तो कोई और बता नहीं है। और मुझे माँ की भी बहुत याद आ रही थी। उनसे बात नहीं हुए बहुत दिन से, मुझे उनके बारे में सोच कर घबराहट भी होने लगते, जिस वजह से मैं अपने आप गुमसुम हो जाती थी। " अनु रोते हुए अपने दिल की सारे डर को आज शिव के सामने रख दि , जिसे सोच कर वह अंदर से परेशान हुई थी लेकिन चेहरे पर हमेशा मुस्कान बरकरार रखी फिर भी उसके ठाकुर साहब जान गए थे।
दिल में एक खुशी हुई कि उसके ठाकुर साहब बिना कहे , कैसे उसकी सारी परेशानी को समझ लेते थे। आज शिव अपने गुस्से और कठोर व्यवहार ना करते हुए उससे मुस्कुराते हुए पुछा तो अनु को सब कुछ बताने से नहीं डरी।
उसकी सारी बात सुन कर शिव मुस्कुरा दिया। उसकी मासूम पत्नी एक गलती पर क्या से क्या सोच कर परेशान हो रही थी।
"अनु, ना मैं तुमसे नाराज था ,और ना ही तुम मुझे दुखी कर रही ही। तुम ऐसा कोई काम ही नहीं करती की मैं तुमसे नाराज होऊंगा। तुम एक पत्नी और एक बहु और भाभी सभी रिश्ते को अच्छी तरह से निभा रही हो। और रही बात तुम से करने की तो मुझे ज्यादा बोलना पसंद नहीं।और मैं घर पर जल्दी क्यों नहीं आता तो तुम्हें मैं पहले भी कह चुका हूँ , मेरा इंतजार मत किया करो , मुझे खुद नहीं पता कि बाहर जाने के बाद मैं घर कब वापस आऊंगा, अभी काम का लोड बड़ गया हैं , जिस वजह से मैं काम करते वक्त घड़ी नहीं देखता तो आने में देर हो जाते है ,और रही तुम्हे नहीं माफ करने की तो मैं उसी दिन ही माफ कर चुका, और भूल भी गया " शिव गंभीरता से अपने लहजे में अनु को सारी परेशानी से मुक्त करते हुए समझता हैं। जिसे सुन अनु को राहत मिली की ठाकुर साहब उससे नाराज नहीं थे।
"माँ जी से क्यों बात नहीं की हो, घर में टेलीफोन है। जब तुम्हे उनकी याद आती हैं तो, तुम खुद लगा कर बात तो कर ही सकती थी ? कोई रोका थोड़ी है " शिव ने पूछा। उसके घर में बहु को कैदी नहीं बना कर रखे है कि मायके में बात करने की अनुमति नहीं है।
" वो मेरे पास नंबर नहीं हैं, मेरे से वो कागज कही गुम हो गया हैं जिसमे मेरे घर के पास वाले दुकान पर रखे टेलीफोन का नंबर माँ ने लिख कर दी थी , और अब मुझे याद ही नहीं आ रहा की कहा रखी थी। मैं कई दिन से खोज रही थी पर मिला ही नहीं " अनु डरते हुए बोली और एक बार फिर अपनी आंखे नीचे कर ली। शर्मिंदा सा महसूस करी।
ये लड़की को सब के जरूरत का समान कहा रखा है ये पता हैं , पर अपने ही जरूरी चीज को गुमाकर कर कितने दिनों से परेशानी में रह लेगी पर मुझे बताया क्यूँ नहीं … मेरी पागल, पर मासूम पत्नी " शिव विचारो में खो कर अनु को घूरते हुए देखता हैं।
"तो मेरे पास आ कर क्यों नहीं मांगा ? मैं रखा था न नंबर। शिव उसके झुके सिर को देख कर पुछा।
" वो.. वो मेरे से नंबर गुम हो गया था, तो मुझे लगा आप डांटोगे अनु हकलाते हुए अपनी आंखे बंद कर शिव के गुस्से का इंतज़ार करने लगी।
शिव उसके चेहरे पर डर देख, चेहरे पर मुस्कान आ गई। " क्या करो मैं इस रूप का मुझे हर पल पागल करती हैं। "
"पागल लडकी, डांटता तब जब तुम मुझे अपने परेशानी के बारे में नहीं बताती। कल मैं बात करवाता हु माँ जी से। " शिव डापटते से कहा।
अनु जल्दी से अपनी आँखे खोल शिव को प्यार भारी नजरो से देखती हैं। उसके चेहरे पर मुस्कान लंबी हो गई,, और ये शिव के दिल की धड़कन तेज कर दी। ये वही मुस्कान हैं जिसे देखने के लिए शिव कुछ भी कर सकता है अपनी छोटी श्रीमति के लिए।
तभी शिव ने पुछा , " वैसे मैं जान सकता हूँ, की तुम मुझसे हमेशा डरती और शर्माती क्यों हो ?"
अनु ने हैरानी में देखी उसके मुस्कान गायब हो गए। "व…वो…जी …, "
शिव ने दबाव डाला , " मुझे जवाब चाहिए श्रीमती जी... जी.. के आगे भी बोलो "
इस प्यार भरे संदेश से उसका दिल हमेशा बढ़ने लगता , और अभी अपनी बढ़ती हुई हृदयगति के बीच शब्द खोजने के लिए संघर्ष करने लगीं। एक तो श्रीमती बोल कर अलग तरह का ही तार छेड़ रहे थे।
शिव उसकी परेशानी को समझते हुए, उस पर पड़ने वाले प्रभाव को देखकर मुस्कुराया।
"मैं जवाब का इंतजार का रहा हूँ श्रीमति जी ",शिव ने होंठो पर छेड़ने वाली मुस्कान लेकर कहा ।
अनु अपने आप को संभालते हुए सावधानी से पूछती है "मैं बताऊंगी तो आप उस दिन जैसा गुस्सा नहीं करेंगे न? जैसे उस दिन आपने जोर से मेरे गर्दन को काटा था।"
शिव उस दिन को याद कर अपनी हँसी रोकते हुए उसे भरोसा दिलाया। "मैं तुमसे क्यों गुस्सा होऊंगा? चलो अब बताओ।"
अनु ने बताने के पहले हिचकिचाहट दिखाई , लेकिन उसके ठाकुर साहब जानने के जिद्द पर अड़े हुए थे। "मेरी जिस दिन मुंहदिखाई थी। किसी को टेलीफोन पर आप बहुत गुस्से में चिल्ला रहे थे, मै सब सुनी थी। साथ ही, सोना और आदि ने मुझे बताया था की आप एक क्रोधी और घमंडी आदमी हो, कुछ भी करने पर डांटेंगे आपको कोई भी बात पर जल्दी गुस्सा आता हैं और अपने मेरे ऊपर कितने बार गुस्सा में डांटे हुए हैं , जबकि मै कोई भी गलती जानबुझ कर नहीं करी, और माँ ने कहा था की पति के सामने ज्यादा नहीं बोलना हैं , जीतना वो पुछे उतना ही बोलना, नहीं तो आप गुस्सा हो कर मुझे डांटेंगे ,इसलिए, मैंने सोचा कि अगर मैं आपसे कुछ कहूंगी, तो आप मुझ पर चिल्लाओगे , और जब कोई मुझ पर चिल्लाता हैं तो मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती, मुझे तुरंत रोना आ जाता है "
शिव उसकी मासुमियत देख कर हँसे बिना नहीं रह सका। वो बता भी बच्चे की तरह रही थी। डांट से रोना आ जाता है।
"पहले मुझे ये बताओ की, क्या मैंने तुम्हें जब भी डाटा या गुस्सा किया हो उसके पिछे कोई वजह नहीं थी?" शिव ने हँसी रोकते हुए उसे देखते हुए पुछा ।
"जी …वजह थी, मैं ही आपको मौका दी थी , लेकिन जानबुझ कर नहीं…" अनु नीचे गर्दन झुकाए ईमानदारी से बोली।
"श्रीमती जी, तो अपने दिमाग में बैठा लो की मेरे डांटने के कारण होते हैं। तुम कोई ऐसा काम भी मत करो जिससे मैं तुम्हें ऊपर चिल्लाओ , लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं की मेरा डांट सुन कर अपनी परेशानी और बात बताना भूल जाओ , डांट खाने के बाद भी तुम बेझिझक मुझे बताओ, समझी, और अब से कोशिश करूंगा की मै ज्यादा गुस्सा ना करू, लेकिन तुम भी कोशिश करो कि मेरे हर बात को सुनो नहीं तो मैं बाद में सजा दूंगा ही…!" शिव समझाया, की अनु खुशी से सहमती में सिर हिलाई। लेकिन आखिरी बात उसके दिल को डरा भी दिए मगर अभी के लिए भूल गई , बाकि उसका जी कहा की आज ठाकुर साहब को एक चूमी दे दे , आज कितने अच्छे से उसे समझा रहे हैं। जो बहुत ही हैरानी की बात थी, ये रूप देख कर वह खुश हो गई थी।
"और उन दोनों बदमाश पर और राहुल पर कुछ भी कहे विश्वास करना बंद करो , पता नहीं क्या क्या तुम्हें पढ़ा कर, मुझे परेशान करेंगे। "शिव जोर देकर कहा शैतानी पर चिढ़ते हुए कहा।
अनु ने जवाब में सिर्फ मुस्कुरा दी। उसके शुभचिंक्त थे वो सब।
बातें खत्म हुई तो दोनों कुछ देर तक एक दूसरे की आँखो में देखते रहे तभी अनु सुझाव देते हुए बोली , "बहुत रात हो गई है, आपको कपड़े बदल कर कर सो जाना चाहिए , आप बहुत थक गए होंगे । "
तभी शिव को थकावट महसूस हुआ, सच में वह ज्यादा ही थका हुआ था, वह बोला " मेरे कपड़े कहा हैं, जो मैं रात को पहन कर सोता हूँ "
"वो मैं निकाल कर रखी हूँ , वो देखिए, आप जहा पर सोते हैं मै वही पर रखी हूँ, ताकि आपको सबसे पहले कपड़े पर ही ध्यान जाए। "अनु बड़े खुशी से कही। शिव के बोलने से पहले ही उसके सारी जरूरत के समान उसके आँखो के सामने होते थे। शिव को खुश करने में अनु कोई भी बात को भूलती नहीं थी।
शादी का इसका बहुत फायदा होता की वह अब खुद का ध्यान रखना भी भूल रहा था, शिव उठने लगा की तभी दोनों को यह अहसास हुआ कि शिव अभी भी उसका हाथ पकड़े हुए , अनु जल्दी से अपनी हाथ खींचती हैं। शिव भी उसका हाथ छोड़ कर कपड़े बदलने चला गया, और शर्माते हुए अनु को पिछे छोड़ दिया। उसके गाल लाल हो गए ठाकुर साहब के बारे में सोच कर अभी दोनों एक दूसरे के सामने बैठ कर बातें कर रहे थे। कितना अच्छा लगा उसके दिल को, चेहरे पर चमक आ गई उसकी
वही बाथरूम में आइने के सामने खड़े होकर सोचने लगा की " मैं इन महीने में अपनी भावनाओं को समझने में असफल रहा, लेकीन अब नहीं हूँ, तुम्हारी मासूम आत्मा को मैं नजरंदाज नहीं कर पा रहा हूँ ,चाहें कुछ भी सोच कर अपने दिमाग में से तुम्हारी छवि को दूर करने की कोशिश करता हूँ , तो मैं और बैचेन होने लगता। इन दिनों काम में बिजी होने के बावजूद भी मैं तुम्हें लेकर बैचेन रहा। जिस दीन हमारी शादी हुई मैं उसी दीन से तुम्हे अपनी पत्नी मान ली था , लेकिन अब तुम धीरे धीरे मेरे दिल में बस चुकी हो , जिसे मैं चाह कर भी कभी भी दूर नहीं कर सकता। तुम्हें डांटना और चोट पहुंचाने के बारे में सोच भी नहीं सकता , पर फिर भी गुस्से में मैं तुम्हे डाट ही देता ,पर ये भी जरूरी हैं । नहीं तो लापरवाही करने में कोई कमी नहीं छोड़ोगी , जितना तुम खुद को लेकर अनाड़ी हो…"
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कुछ देर बाद शिव बाहर आया तो दिखा अनु अपने बाल खोल रही थी, अनु पहले ही अपनी साड़ी बदल कर एक पतली साड़ी पहन चुकी थी। उसके कमर से नीचे तक आते सीधा बाल, शिव का पसंदीदा चीज उसको देख बस उसके मुँह से यही निकला
"उफफ… "
लेकिन शिव पहले जा कर बिस्तर पर लेट गया, और अनु को देखा जो अपनी चूड़ियां खोल रही थी वह उसके बदन देखता है जो उसके दिए निशान सब मिट गए थे।
" क्या मुझे निशान देने की जरूरत हैं , ऐसे अच्छे नहीं लग रहे हैं मेरी नाजुक गोरी त्वचा की पत्नी के बदन " शिव उसको गौर से देखते हुए सोच हैं। दिमाग में गंदे गंदे ख्याल दौड़ने लगे, उसे देख कर खुद को कैसे रोके शायद उसे सीखने की जरूरत थे। मगर दिक्कत थे सिखाए कौन....
अनु बती बुझा कर एक छोटा सा बती बिस्तर के बगल में जला कर छोड़ दी। और शिव से थोड़ी दूरी पर लेट गई। ये देख शिव बिना झिझक, अधिकार से अनु के कमर पकड़ कर उसे एक झटके में अपने सिने से उसकी पीठ को लगा लेता हैं। अनु इस झटके से अपनी मुंडी घुमाकर शिव को दिखती हैं, जो कम रोशनी में ज्यादा कुछ तो नही दिखा पर एक दूसरे के सांसों को महसूस कर सकते थे।
"क्या तुम्हें नहीं पता की कहा पर सोना हैं", शिव उसके गर्दन में मुँह घुसा कर हल्के हल्के कोमल चूमा देते हुए कहा, जबकि उसका हाथ,, नंगी कमर पर कोमल त्वचा को पकड़ को मसला,, उसके नाभि मे अपनी ऊँगलियों को डाल कर अंदर घुसाने की कोशिश किया,, जैसकरने से उसके उंगलिया अंदर चले जायेंगे..
अनु जवाब में कुछ नहीं बोल पाई, उसे तो शिव की करीबी ने उसके सीने की गति को बढ़ा दिया था। उसके हाथों की पकड़ चादर पर कस गई।
शिव उसके गर्दन में घुस अपनी मनमानी करता रहा,उसके गर्दन पर खुले मुँह होंठ को रख कर चुम्बन करता गया,,उसके मादक खुश्बू को नाक से अंदर की और तिरते हुए फेफड़ों मे भारा, जिससे उसके शरीर के नस मे खून का प्राभव को बढ़ा दिया,,क्या पत्नी है उसकी एक हर पल बस पागल किये हुए रहती है उसे...
तभी अनु हकलाते हुए सांसे को काबू में करते हुए बोल
"ज…जी…जी…स…सुनिए… "
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कैसा लगा आज का पार्ट कमेंट करके बतायेगा प्यारे कहानी पढ़ाकू लोग ।
हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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