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हवेली के बाहर घोर शांति में, रात की अँधेरी में, धरती को रोशनी कर रहि,, गोला आकार कर चंदा मामा, और चमकते तारे,, उन सब की रोशनी, ठाकुर हवेली के ऊपर भी पड़ rhi,, जिससे खिड़की रोशनदानी के छेद से कमरे में जा rhi,, लेकिन ये सफ़ेद हल्की रोशनी, कमरे में पहले से ही पिल्ली रोशनी के सामने टिक नहीं पाया,, पिल्ले रोशनी से कमरा नहाया हुआ,, उसके अंदर रखे, एक छोटे से चीज भी दिख रहा, to एक बड़ा शरीर भी दिख रहा,,,बिस्तर पर,, पारो,, सीधी लेटी हुई,, काँपते, हाँफ्ते हुए,, आँखों में असीम सुख कर, दर्द, आंनद लिए अर्जुन को देखि रही,,



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