
" क्या हुआ ...? ,,,,, खोल कर नहीं देखोगी..... ?" शिव अपनी गहरी आँखों को घुमाकर पूछता हैं। अनु चौंकते हुए ठाकुर साहब को देखी।
"जी.. मैं खोलती हूँ !,, वह झट से नजर नीची कर ली। "मैं कबसे उनको ही ताड़ रही थी। शायद उनको पढ़ने की कोशिश कर रही थी । पर शायद उनको पढ़ पाना इतना आसान नहीं है मेरे लिए..."

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